Thursday, August 20, 2009

नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! -

क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में उषा है मुसकराती, (1)

घोर गर्जनमय गगन के कंठ में खग पंक्ति गाती; (2)

एक चिड़िया चोंच में, तिनका लिए जो गा रही है, वह सहज में ही पवन उंचास को नीचा दिखाती!(3)

नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख प्रलय की निस्तब्धता से सृष्टि का नव गान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! (4)